प्रेतादि दोष निवारक मंत्र :
तह कुष्ट इलाही का बान, कुड्डम की पत्ती चिरावत भाग अमुक अंग से भूत मारू धुनवान कृष्णवर पूत आज्ञा कामरू कामाक्षा माई की, हाड़ि दासी चंडी की दुहाई।
विधि :
इस मंत्र को तीन बार पढ़कर, एक मुट्ठी धूल को अभिमंत्रित कर रोगी को मारें और थोड़ी धूल चारों ओर दिशाओं में फेंक दें। इससे प्रेतादि के प्रकोप का कोई डर नहीं रहता, क्योंकि इस प्रयोग से प्रेतादि की छाया का निवारण हो जाता है। मंत्र में अमुक के स्थान पर रोगी का नाम बोलें और होली की रात्र में पहले दस हजार जप करके मंत्र को सिद्ध अवश्य कर लें ।
राक्षस दोष का मंत्र :
ॐ नमो आदेश गुरु को, सुरगुरु बेची एक मंडली आणि, दोय मंडली आणि, तीन मंडली आणि, चार मंडली आणि, पांच मंडली आणि, छह मंडली आणि, सात मंडली आणि, हलती आणि चलती आणि नंसती आणि माजंती आणि सिहारो आणि उहारी आणि, उग्र होकर चढेंती घाल वाय,सुग्रीव वीर तेरी शक्ति, मेरी भक्ति फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा।
विधि :
यदि इस मंत्र का उच्चारण करते हुए प्रभावित व्यक्ति को इक्कीस बार झाड़ा लगाएं तो वह शीघ्र ही राक्षस संबंधी सभी दोषों से मुक्त हो जाता है।
मसान भैरवी मंत्र :
"ॐ ह्रीं बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु भैरवी ह्रीं
स्वाहा।"
या
"ॐ मसान भैरवी विद्महे काली स्वरूपिणी धीमहि
तन्नो देवी प्रचोदयात् ।"
मंत्र का प्रभाव:
इस मंत्र के जप से भय, नकारात्मक ऊर्जा औरबा धाओं का नाश होता है।
यह तंत्र साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है,विशेषकर श्मशान साधना में।
यह तंत्र-मंत्र से जुड़े हुण लोगों के लिए आत्मबल और सिद्धि प्राप्ति में सहायक होता है।